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Jammu-Kashmir : फारूक अब्दुल्ला को लेकर जो आपने सुना वो झूठ है? पूर्व RAW प्रमुख ने खोल दी सारी पोल!

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Jammu-Kashmir : जम्मू-कश्मीर की सियासत और अनुच्छेद 370 का जिक्र हो, तो विवादों का उठना स्वाभाविक है। इस बार तूफान का केंद्र बनी है पूर्व रॉ चीफ अमरजीत सिंह दुलत की नई किताब द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई। किताब में जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को लेकर किए गए दावों ने सुर्खियां बटोरीं, लेकिन दुलत ने इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया। आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि आखिर यह विवाद क्यों और कैसे शुरू हुआ।

किताब में क्या था दावा?

द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई के विमोचन से पहले ही खबरें उड़ीं कि किताब में दावा किया गया है कि फारूक अब्दुल्ला ने 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले का निजी तौर पर समर्थन किया था। यह दावा जम्मू-कश्मीर की सियासत में भूचाल लाने के लिए काफी था, क्योंकि अनुच्छेद 370 का मुद्दा कश्मीरियों के लिए बेहद संवेदनशील रहा है।

लेकिन किताब के विमोचन के मौके पर दुलत ने इन दावों को पूरी तरह बकवास करार दिया। उन्होंने साफ कहा कि किसी भी कश्मीरी ने, खासकर फारूक अब्दुल्ला ने, इस फैसले का समर्थन नहीं किया। दुलत के इस बयान ने न केवल विवाद को नया मोड़ दिया बल्कि उनकी किताब को और चर्चा में ला दिया।

फारूक अब्दुल्ला का दर्द और सवाल

दुलत ने किताब में फारूक अब्दुल्ला के साथ अपनी एक मुलाकात का जिक्र किया, जो फरवरी 2020 में उनकी नजरबंदी हटने के बाद हुई थी। इस मुलाकात में अब्दुल्ला ने अपना दुख और निराशा जाहिर की थी। उन्होंने दुलत से सवाल किया, “अगर गिरफ्तारी करनी ही थी, तो कम से कम विश्वास में तो लेते?” अब्दुल्ला का कहना था कि उन्होंने हमेशा देश का समर्थन किया, फिर भी उन्हें और उनके परिवार को नजरबंदी का सामना करना पड़ा। दुलत ने इस मुलाकात को किताब में भावनात्मक रूप से उकेरा है, जो कश्मीर के सियासी हालात की जटिलता को दर्शाता है।

अनुच्छेद 370 पर दुलत का नजरिया

दुलत ने अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को जम्मू-कश्मीर में व्यापक विरोध का कारण बताया। उन्होंने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के उस बयान का हवाला दिया, जिसमें चिदंबरम ने इस फैसले को बड़ी भूल करार दिया था। दुलत का कहना है कि यह फैसला कश्मीरियों के बीच गहरे असंतोष का कारण बना। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता, जो देश के प्रति वफादारी दिखाते रहे हैं, इस फैसले से आहत हुए। दुलत का यह बयान न केवल उनकी किताब की विश्वसनीयता को बढ़ाता है बल्कि कश्मीर के सियासी माहौल को समझने का एक नया दृष्टिकोण भी देता है।

फारूक अब्दुल्ला: देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक

दुलत ने फारूक अब्दुल्ला की जमकर तारीफ की और उन्हें देश के सबसे बड़े नेताओं में से एक बताया। उन्होंने अब्दुल्ला के साहस, देशभक्ति और कश्मीर के लिए उनके योगदान को रेखांकित किया। दुलत का मानना है कि अब्दुल्ला जैसे नेताओं की आवाज को दबाना देश के लिए नुकसानदायक हो सकता है। इस बयान ने न केवल अब्दुल्ला के समर्थकों को बल दिया बल्कि यह भी दिखाया कि दुलत की किताब केवल विवादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कश्मीर के नेताओं के संघर्ष को भी सामने लाती है।

किताब का विमोचन और विवादों का साया

किताब का विमोचन एक भव्य समारोह में हुआ, जिसमें पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की पत्नी सलमा अंसारी ने शिरकत की। इस कार्यक्रम में देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर को भी शामिल होना था, लेकिन राजनीतिक विवादों के चलते उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए।

दुलत ने स्वीकार किया कि किताब के बारे में शुरू में फैली अफवाहों ने उन्हें चिंतित किया था, लेकिन उनका मानना है कि किताब पढ़ने के बाद पाठक वास्तविकता को समझ सकेंगे। यह किताब न केवल कश्मीर की सियासत को समझने का एक जरिया है बल्कि यह देश के नीति-निर्माताओं के लिए भी एक सबक हो सकती है।

क्यों पढ़ें यह किताब?

द चीफ मिनिस्टर एंड द स्पाई केवल एक किताब नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के सियासी इतिहास का एक दस्तावेज है। यह किताब अनुच्छेद 370, फारूक अब्दुल्ला और कश्मीर के जटिल हालात को समझने का एक अनूठा मौका देती है। दुलत की लेखनी न केवल तथ्यों को सामने लाती है बल्कि कश्मीरियों के दर्द और उनकी उम्मीदों को भी उजागर करती है। अगर आप कश्मीर की सियासत और इसके भविष्य को समझना चाहते हैं, तो यह किताब आपके लिए जरूरी है।

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