रुड़की : हरिद्वार जिले के रुड़की के नजदीक लंढौरा क्षेत्र में एक भयावह अग्निकांड ने तबाही मचा दी। शनिवार की देर रात शिकारपुर गांव में बसे वन गुर्जर परिवारों की झोपड़ियों में अचानक आग की लपटें उठीं, जो देखते ही देखते पूरे इलाके में फैल गईं। इस हादसे ने न सिर्फ इन परिवारों के सपनों को जलाकर खाक कर दिया, बल्कि तीन मवेशियों की जान भी ले ली, जबकि दो अन्य बुरी तरह झुलस गए। फायर ब्रिगेड की त्वरित कार्रवाई ने बड़ी राहत दी, वरना नुकसान और भी भयानक हो सकता था।
कैसे शुरू हुई यह आग?
खानपुर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले शिकारपुर गांव में वन गुर्जर परिवार अपनी झोपड़ियों में सादगी भरा जीवन जीते हैं। बताया जा रहा है कि रात के सन्नाटे में एक झोपड़ी से आग की शुरुआत हुई। हवा के झोंकों ने इसे इतना भयानक बना दिया कि कुछ ही पलों में आसपास की 20 झोपड़ियां इसकी चपेट में आ गईं। लपटें इतनी तेज थीं कि स्थानीय लोग कुछ समझ पाते, उससे पहले ही सब कुछ राख में तब्दील होने लगा। कपड़े, गहने और रोजमर्रा की जरूरत का सामान तक इस आग में स्वाहा हो गया।
फायर ब्रिगेड ने दिखाई बहादुरी
हादसे की सूचना मिलते ही रुड़की फायर ब्रिगेड की टीम हरकत में आई। मौके पर पहुंचते ही दमकल कर्मियों ने आग बुझाने की जद्दोजहद शुरू कर दी। कड़ी मेहनत के बाद आग पर काबू पाया गया, लेकिन तब तक काफी कुछ तबाह हो चुका था। फिर भी, उनकी सूझबूझ ने करीब 100 मवेशियों की जान बचा ली। समय रहते रस्सियां खोलकर इन जानवरों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया, वरना यह हादसा और भी दर्दनाक हो सकता था।
परिवारों पर टूटा दुखों का पहाड़
इस अग्निकांड ने वन गुर्जर परिवारों को बेसहारा कर दिया। तीन बछड़ों की जिंदा जलने से मौत और दो मवेशियों का गंभीर रूप से झुलसना इस त्रासदी को और मार्मिक बना गया। इन परिवारों के लिए ये मवेशी सिर्फ पशु नहीं, बल्कि उनकी आजीविका का आधार थे। अब उनके सामने सवाल है कि वे अपने जीवन को कैसे फिर से पटरी पर लाएं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन को तुरंत मदद के लिए आगे आना चाहिए, ताकि इन परिवारों को फिर से उम्मीद की किरण दिख सके।
आगे क्या?
यह हादसा हमें सोचने पर मजबूर करता है कि ऐसी घटनाओं से बचाव के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षा के बेहतर इंतजाम और जागरूकता बेहद जरूरी है। फिलहाल, प्रभावित परिवारों की मदद के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास शुरू हो गए हैं, लेकिन इस दिशा में ठोस कदम उठाना अभी बाकी है।