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Uttarakhand : हिमालय बचाने की जंग, नीति आयोग की ये 5 योजनाएं बदल देंगी उत्तराखंड का भविष्य

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देहरादून : नीति आयोग, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (एनआईएचई) और अंतरराष्ट्रीय एकीकृत पर्वतीय विकास केंद्र (आईसीआईएमओडी) के सहयोग से 17 फरवरी, 2025 को अल्मोड़ा में “स्प्रिंगशेड प्रबंधन एवं जलवायु अनुकूलन” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई।

इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय स्थिरता के लिए प्रमुख रणनीतियों पर विचार साझा किए।

जल स्रोत पुनर्जीवन और जीईपी इंडेक्स

मुख्यमंत्री धामी ने बताया कि “स्प्रिंग एंड रिवर रिजुविनेशन अथॉरिटी” के तहत 5,500 जल स्रोतों और 292 सहायक नदियों का उपचार किया जा रहा है। उन्होंने राज्य के जीईपी (ग्रीन एनवायरनमेंटल प्रोडक्ट) इंडेक्स की चर्चा करते हुए कहा, “यह पर्यावरणीय संसाधनों के आर्थिक मूल्यांकन की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।” साथ ही, नदी जोड़ो परियोजना के तहत पिडंर नदी को अन्य नदियों से जोड़ने का प्रस्ताव नीति आयोग को भेजा गया है।

हिमालयी गांवों का पुनर्जीवन और डिजिटल कनेक्टिविटी

नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी ने “वाईब्रेंट विलेज योजना” को गति देने और पलायन रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “विज्ञान, महिला सशक्तिकरण और सामुदायिक भागीदारी ही हिमालय के टिकाऊ भविष्य की नींव हैं।”

पर्यावरण संरक्षण में सांस्कृतिक दृष्टिकोण

सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने उत्तराखंड के जल स्रोतों के प्रति सांस्कृतिक सम्मान को रेखांकित करते हुए कहा, “यहाँ नदियाँ केवल जल स्रोत नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र हैं। इनके संरक्षण के लिए सामुदायिक भागीदारी अनिवार्य है।” कार्यशाला के दौरान प्रो. अन्नपूर्णा नौटियाल की पुस्तक “भारतीय हिमालय क्षेत्र: एक सतत भविष्य की ओर” का भी विमोचन किया गया, जो हिमालयी पारिस्थितिकी पर एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है।

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