देहरादून। असम में शांति व्यवस्था कायम करने के प्रयास में एक बड़ी कामयाबी मिली है। असम में 40 साल में पहली बार सशस्त्र उग्रवादी संगठन उल्फा ने भारत और असम सरकार के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौते पर सहमति जताई है। इसके साथ ही अमृतकाल में असम के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत होने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन में असम सहित पूरे पूर्वाेत्तर में हिंसा के काले दौर को समाप्त करने की कोशिश ज़ोर-शोर से चल रही है।
शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, असम सरकार और उल्फा के बीच यह त्रिपक्षीय शांति समझौता संभव हो पाया है। इस शांति समझौते के साथ ही पूर्वाेत्तर के राज्यों में दशकों पुराने उग्रवाद का अंत हो गया है। मोदी जी के शांत, सुरक्षित और समृद्ध पूर्वाेत्तर के सपने को साकार करने की दिशा में शाह ने यह एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। असम लंबे समय तक उल्फा की हिंसा से त्रस्त रहा और वर्ष 1979 से अब तक 10 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
आतंकवाद को मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन मानने वाले शाह की नीतियों के तहत असम का सबसे पुराना उग्रवादी संगठन उल्फा हिंसा छोड़ने, संगठन को भंग करने और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने पर सहमत हुआ है। उल्फा के साथ इस समझौते के तहत असम के लोगों की सांस्कृतिक विरासत बरकरार रहेगी। उल्फा के जिन कैडरों ने आत्मसमर्पण किया है, उन्हें समाज की मुख्यधारा में जोड़ कर रोजगार के नए मार्ग प्रदान किए जाएंगे। उल्फा के सदस्यों को जिन्होंने सशस्त्र आंदोलन का रास्ता छोड़ दिया है, उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी हर संभव प्रयास कर रही है।
भारतीय राजनीति के चाणक्य अमित शाह द्वारा असम में शांति व्यवस्था को लेकर उठाया गया यह कदम आने वाले समय में असम सहित पूरे पूर्वाेत्तर के विकास के लिए मील का पत्थर साबित होगा। आज अमृतकाल में पूर्वाेत्तर में एक के बाद एक समस्या का स्थायी समाधान निकाला जा रहा है। आतंकवाद मुक्त भारत के निर्माण में जुटे शाह की नीतियों के तहत अब तक पूरे नॉर्थ ईस्ट में 9000 से ज्यादा कैडरों ने समर्पण किया है। बीते 9 वर्षों की उपलब्धियों के आधार पर यह मानने से कोई गुरेज नहीं कि देश आज सुरक्षित हाथों में है।