(अनिल सती/अनुराग गुप्ता)
देहरादून। केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश के तीन जिलों के सीमांत गांव में वाइब्रेंट विलेज योजना से राज्य के सीमावर्ती इलाकों को विकास से जोड़ने की पहल शुरू हो चुकी है इसके साथ ही यहां कानून व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को चाक चौबंद करने के लिए पुलिस ने भी कसरत शुरू कर दी है।
इसके लिए पुलिस विभाग के मुखिया पुलिस महानिदेशक उत्तराखण्ड ने पहल शुरू की है। राज्य के डीजीपी अभिनव कुमार ने बताया कि इन सभी वाईब्रेंट विलेज का चिन्हीकरण कर यहां कानून व्यवस्था बनाने में पुलिस क्या क्या कर सकती है इसके लिए प्रशासन के अधिकारियों से बैठक की गयी जिसमें यह निर्णय लिया गया कि इन सभी गांवों की भौगौलिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर यह देखा जाएगा कि ये राजस्व क्षेत्र में हैं या फिर सिविल पुलिस के क्षेत्र में।
यदि राजस्व पुलिस के क्षेत्र में हैं तो यहां पुलिस अपनी भूमिका कैसे निभायेगी और इसके लिए पुलिस को राजस्व अधिकारियों से सामनजस्य बनाना होगा और पुलिस तथा राजस्व अधिकारियों के बीच की संवादहीनता को समाप्त करना होगा। जो गांव सिविल पुलिस के अधीन आते हैं उन गांवों में चौकी या थाना की स्थापना से लेकर वर्तमान थाना चौकी से गांव की दूरी, किसी भी स्थिति में वहां जल्द से जल्द पहुंचने के लिए संसाधन, संचार सुविधा आदि का विश्लेषण किया जाएगा और उसको और अधिक सुदृढ़ किया जाएगा। डीजीपी ने बताया कि इन गावों को राष्ट्रीय सुरक्षा की लिहाज से भी देखा जा रहा है क्योंकि इनमें अधिकांश गांव राज्य ही नहीं देश के सीमावर्ती गांव हैं जो कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सवेदनशील हैं।
बताते चलें कि केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा उत्तराखंड के सीमांत गांवों को निखारने के लिए प्रयास जारी है। इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। आने वाले दिनों में चीन और नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड के गांवों की न केवल तस्वीर बदलेगी, बल्कि वहां से पलायन पर भी अंकुश लग सकेगा। केंद्र सरकार का ‘वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम’ इसकी राह सुगम बनाएगा, जिसके क्रियान्वयन के लिए सरकार कार्ययोजना तैयार कर रही है। इसके तहत कई विकास कार्य कराए जाएंगे, जिससे वहां के लोगों को काफी फायदा होगा।
इसमें सीमांत गांवों में पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार जैसी मूलभूत सुविधाओं के विस्तार और आजीविका विकास पर मुख्य रूप से जोर दिया गया है। राज्य की 675 किलोमीटर सीमा चीन और नेपाल से सटी है। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सीमा से लगे जिलों के गांव पलायन का दंश भी झेल रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग यहां से रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों की तरफ जाते हैं। सरकार के इन कदमों से रोजगार के अवसर भी प्राप्त होंगे।
हालांकि, सीमांत गांवों के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से सीमांत क्षेत्र विकास कार्यक्रम चल रहे हैं, लेकिन नई योजना से अब इसमें तेजी आएगी। उत्तराखंड के सीमांत गांव में अब तक 51 गांवों का चिन्हीकरण किया गया है। यह 51 गांव उत्तराखंड के 3 जनपदों उत्तरकाशी, चमोली और पिथौरागढ़ से चिन्हित किए गए हैं।
उत्तरकाशी के भटवाड़ी, चमोली के जोशीमठ और पिथौरागढ़ के मुनस्यारी, धारचूला कनालीछीना ब्लॉक में से गांवों को चिन्हित किया गया है। उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में उत्तराखंड के सीमांत गांवों की तस्वीर बदल सकती है। केंद्रीय पोषित योजनाओं के तहत मिले बजट से इन विलेज को सँवारा जाएगा जिसमें राज्य सरकार से 53 करोड़ और 586 करोड़ राज्य सरकार की ओर से इस योजना पर खर्च किया जाएगा।
इसके अंतर्गत इन तीन जिलों के वाइब्रेंट विलेज को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए यहां पर्यटन, कौशल विकास, सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा नवीकरण और रोजगार की संभावनाओं पर काम किया जाएगा। इन गांव में पर्यटन बढ़ाने के लिए यहां टूरिस्ट गाइड तैयार किए जाएंगे जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल सके। वहीं राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने के लिए संस्कृति कर्मियों को तैयार किया जाए और उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी।
वही इन गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लिए एनएचएम के तहत स्वास्थ्य उपकेंद्रों के साथ ही कर्मियों के आवास भी बनाए जाएं जिनमें रोस्टर में कर्मचारी को ड्यूटी पर लगाया जा सकेगा। इसके साथ ही यहां तमाम विकास संबंधी गतिविधियों के साथ ही कानून व्यवस्था और आम जन के साथ ही राज्य की सीमाओं की सुरक्षा के लिए पुलिस ने भी पहल शुरू कर दी है।