टिहरी। राजकीय महाविद्यालय अगरोड़ा टिहरी गढ़वाल में कार्यरत वनस्पति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक भरत गिरी गोसाई ने देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले मे स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां चंद्रबनी के बारे मे विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि देवप्रयाग से 35 किलोमीटर दूर स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों में से एक है।
मंदिर समुद्र तल से 2277 मीटर की ऊंचाई पर चंद्रबदनी पर्वत पर स्थित है जिस वजह से आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करने के अलावा, हिमालय की चोटियों जैसे सुरकंडा, केदारनाथ, और बद्रीनाथ के साथ-साथ हरे-भरे गढ़वाल पहाड़ियों की मनोरम दृष्टि प्रदान करता है।
मां भगवती का यह मंदिर श्रीनगर टिहरी मोटर मार्ग पर है। मान्यता है कि माता सती का कटि भाग यहां स्थित चन्द्रकूट पर्वत पर गिरने से यहां सिद्धपीठ की स्थापना हुई। इसलिए यहां का नाम चन्द्रबदनी पड़ा। यहां माता की मूर्ति के दर्शन कोई नहीं कर सकता है। पुजारी भी आंखों पर पट्टी बांधकर मां चन्द्रबदनी को स्नान कराते है।
कहा जाता है कि जगत गुरु शंकराचार्य ने श्रीयंत्र से प्रभावित होकर चन्द्रकूट पर्वत पर चन्द्रबदनी शक्ति पीठ की स्थापना की थी। इस देवस्थल की एक खास बात है। कहा जाता है कि इस मंदिर में देवी चन्द्रबदनी की मूर्ति नहीं है। यहां सिर्फ देवी का श्रीयंत्र पूजा जाता है। कहा जाता है कि इस मंदिर गर्भ गृह में एक शिला पर ही श्रीयंत्र बना है।
उसके ऊपर चाँदी का बड़ा छत्र रखा गया है। इस मंदिर पुरातात्विक अवशेष से पता चलता है कि 8 वी शताब्दी पहले ही इस मंदिर का निर्माण किया गया था। मंदिर के निकट यात्रियों के विश्राम और भोजन की समुचित व्यवस्था है। वैसे तो हर दिन दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं, पर नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या हजारों में पहुंच जाती है।
अप्रैल महीने में हर साल यहां मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु माता के जयकारे लगाते पैदल मार्ग से यहां पहुंचते हैं। यहां की महिमा अपरंपार है। मान्यता है कि यहां आने वालों की हर मुराद पूरी होती है। “मां चंद्रबदनी की कृपा सदैव सब पर बनी रहे”।