डिजिटल डेस्क : देश की स्वतंत्रता के 75 साल गुजर जाने के बाद भी हिंदी भाषा को अभी तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। पर यह सत्य है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा होने का स्वमेव गौरव प्राप्त है वैश्विक स्तर पर हिंदी का परिचय लहरा रहा है और हिंदी को किसी मान्यता प्राप्त होने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है, किंतु औपचारिक रूप से सरकार को चाहिए हिंदी को राष्ट्रभाषा का उसका अपना गौरव प्रदान करें। राष्ट्रभाषा बनने के साथ-साथ इतनी समृद्ध शाली, ऐतिहासिक हिंदी भाषा को कम से कम देश के हर प्रांत को एकता के सूत्र में बांधने वाली जन भाषा होनी ही चाहिए। अलग-अलग प्रदेशों कि स्थानीय मूल बोलियों, भाषाओं का हम कतई विरोध नहीं करते पर हिंदी को भारत में कम से कम सर्वोच्च सम्मान देकर राष्ट्रभाषा होने का गौरव हासिल होना ही चाहिए साथ ही स्थानीय भाषाओं से ऊपर हिंदी को जन भाषा का यथोचित सम्मान प्राप्त होना हो।
यह अलग बात है कि भारत देश में अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने 22 भाषाओं को संवैधानिक रूप से मान्यता प्रदान की है, पर हमारी हिंदी सर्वाधिक बोली जाने वाली तथा लिखी जाने वाली भाषा है। देश में हिंदी बोलने तथा पढ़ने वालों की संख्या लगभग 65 से 70 करोड़ है, यह भाषा की बहुलता ,विविधता ही है जिसके कारण भाषाई विवाद की स्थिति उभरी है, और सर्वाधिक नुकसान हिंदी को उठाना पड़ा है। वर्ष 2008 में विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयॉर्क (अमेरिका) में भारतीय साहित्यकारों, कवियों को चिंतकों ,प्रोफ़ेसर, चिंतकों, पत्रकारों ने बड़े जोर शोर से संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकारिक भाषा बनाने हेतु मान्यता देने के लिए पुरजोर कोशिश की थी। कोशिश तो हमेशा ही की जानी चाहिए और यह बड़ी ही सार्थक पहल भी थी, पर इसके पूर्व भारत के हिंदी साहित्य के विद्वानों को हिंदी को पहले अपने देश में राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए। भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने भी कहा है,
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल।
बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटत ना हिय को शूल।
देश में भाषाई विविधता के कारण हिंदी को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ा है ।इसके अलावा कुछ स्वार्थी राजनीतिक के लोग नहीं चाहते कि हिंदी को सर्वोच्च सम्मान मिले और इसके लिए विभिन्न प्रकार के विरोध एवं आंदोलन भी करते रहे हैं, इसके अलावा लोगों को उकसा कर जन आंदोलन का रूप भी देने का प्रयास करते रहे हैं जो अत्यंत निंदनीय है।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में यह महसूस किया था कि हिंदी दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर सबसे ज्यादा लोगों की संपर्क भाषा थी। देश के विभिन्न भाषा भाषी लोग हिंदी भाषा में ही संपर्क कर के अपने संदेश तथा सूचना एक दूसरों को प्रदान किया करते थे,और हिंदी भाषा के संपर्क सूत्रों के चलते ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अथक मेहनत कर हिंदी की सहायता से स्वतंत्रता प्राप्त की थी।
हिंदी की सार्वभौमिक स्थिति एवं बड़े समुदाय द्वारा बोले जाने वाली भाषा के रूप में स्थापित होने के बाद इसे राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया गया था। हिंदी एक व्यापक भाषा है जिस की लिपि देवनागरी होने के कारण अत्यंत सरल एवं आवश्यकता अनुसार दूसरी भाषाओं को और उनके शब्दों को बड़ी सुगमता से आत्मसात करने की क्षमता तथा विशालता है। हिंदी देशवासियों की भावनात्मक भाषा भी है इसका देश की एकता तथा अखंडता में एक का बड़ा योगदान रहा है। हिंदी एक बड़ी सक्षम तथा विशाल भाषा का दर्जा भी रखती है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने भी कहा कि हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिस जिस ने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया।
14 सितंबर 1949 को संविधान की सभा ने एकमत से हिंदी को भारत की राजभाषा बनाए जाने का निर्णय भी लिया इसीलिए भारत में हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने का संकल्प लिया गया। हिंदी दिवस मनाए जाने का एकमात्र उद्देश्य इसके व्यापक प्रचार-प्रसार एवं राजकीय प्रयोजनों में इसके ज्यादा से ज्यादा उपयोग को बढ़ावा देने का है। केंद्रीय सरकारी कार्यालयों में देखा गया है कि वहां पर स्लोगन दीवारों पर लिखे गए हैं कि हिंदी का उपयोग लिखने एवं पढ़ने के लिए ज्यादा से ज्यादा करें। विडंबना यह है कि भारत में ही हिंदी के प्रचार-प्रसार की हमें आवश्यकता पड़ रही है। यद्यपि ऐसा होना नहीं चाहिए। हिंदी को राष्ट्रभाषा बना कर इसका अनिवार्य रूप से उपयोग शासकीय कार्यालयों तथा जनसभाओं में किया जाना चाहिए देश के पूरे प्रदेशों में इसको समान रूप से स्वीकृत भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए। हमने इंग्लैंड, अमेरिका, स्विजरलैंड और अन्य देशों की यात्राएं भी है पर वहां कहीं भी उनकी अपनी भाषा के उपयोग के लिए कार्यालय में स्लोगन लिखा जाना नहीं देखा गया,तो भारत में ही क्यों।
सवाल इसलिए उठता है कि हमारे दक्षिण तथा कुछ अन्य राज्यों में हिंदी को हिकारत की नजर से देख कर हिंदी वासियों से दूरी बनाई रखी जाती है। यह भी हिंदी भाषा तथा देश के लिए विडंबना ही है। एनी बेसेंट ने बिल्कुल सच कहा है कि भारत के विभिन्न प्रांतों में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं में जो भाषा सर्वाधिक प्रभावशाली बन कर उभरी है वह है हिंदी भाषा। जो व्यक्ति हिंदी जानता है पूरे भारत की यात्रा कर सकता है पर हिंदी बोलने वालों से हर तरह की जानकारी भी प्राप्त कर सकता है। हिंदी का बड़ा नुकसान अंग्रेजी भाषा ने भी किया है दक्षिण में स्थानीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी बहुतायत में बोली जाती है पर ना जाने क्यों हिंदी बोलने से बेशक परहेज करते हैं। सबको अपनी भाषा बोलने का अधिकार है पर हिंदी का अपमान करने का अधिकार देश में किसी को नहीं होना चाहिए।
कई विद्वानों के सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि इस विश्व में हिंदी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है उसने अंग्रेजी भाषा को पीछे छोड़ दिया है। यह सर्वे की रिपोर्ट कितनी प्रमाणित है यह तो मालूम नहीं लेकिन निकट भविष्य में ऐसी संभावनाएं बन सकती है कि जब हिंदी वैश्विक भाषा बनकर तेजी से उभरेगी। हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी शासन ने अनेक योजनाओं को मूर्त रूप दिया है जिनमें कक्षाओं कवि सम्मेलन नाटकों संगोष्ठी में हिंदी अनुसंधान ओ हिंदी टंकण आदि के बढ़ावा देने के साथ हिंदी पत्र-पत्रिकाओं को भी आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रयास किया है।
दूसरी तरफ कंप्यूटर, इंटरनेट, ई बुक, विज्ञापन ,टेलीविजन तथा अन्य मीडिया के साधनों के क्षेत्र में हिंदी का अधिकतम उपयोग करने की समझाइश दी गई है, ताकि इसका विकास एवं संवर्धन किया जा सके। हिंदी भाषा भारत के अलावा मॉरीशस, फिजी, श्रीलंका जैसे देशों में बोली वह समझी जाती है। हिंदी के विशेष प्रचार प्रसार के लिए विश्व हिंदी सम्मेलन अलग-अलग देशों में आयोजित किए जाते रहे हैं। वैसे वैश्विक स्तर पर 10 जनवरी को हिंदी दिवस मनाने की परंपरा लागू की गई है। हिंदी के प्रचार प्रसार तथा संवर्धन के लिए 10 जनवरी 1975 को नागपुर में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी ने कहा था हिंदी का प्रचार और विकास अब कोई रोक नहीं सकता है।
संजीव ठाकुर ,चिंतक, लेखक, स्तंभकार,संयोजनकर्ता, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415