चमोली (प्रदीप लखेड़ा): हिमालय वासियों की आराध्य भगवती नन्दा स्वनूल मायके पहुंची मैतियों ने किया भव्य स्वागत, बेटियों के मायके पहुंचने पर छलक उठी आंखें, मैनवाखाल में जागरों के माध्यम नन्दा को नन्दीकुड एवं देवी स्वनूल को सोना शिखर से बुलाया गया। मैनवाखाल में दोनों बहिनें नन्दा स्वनूल की भेंट होती है नन्दा नन्दीकुंड और स्वनूल सोना शिखर से मैनवाखाल में पहुंचती है फिर दोनों बहिनें घंटाकर्ण के सानिध्य में मायके पहुंचती है।
रात्रि में रिखडारा उडियार में जागर गायन किया जाता है सुबह स्नान पूजा – अर्चना के बाद मां नन्दा वंशी नारायण नागचुना बैरजीक मुव्वा खरक होते हुए फुलाणा में स्थानीय लोगों द्वारा भगवती को भोग लगाया जाता है। जगह-जगह भगवती नन्दा स्वनूल का भव्य स्वागत होता है। जागरों के माध्यम से जात यात्रियों से कैलाश आने जाने का वर्णन वहां के सौन्दर्य खुशहाली का जिक्र होता है, जिसमे जात यात्री भी जागरों में ही वर्णन करते हैं। मां नन्दा के मंदिर में नन्दा का धर्म भाई लाटू अवतरित होता है।
भगवान घंटाकर्ण क्षेत्र से लोगों ने खुशहाली की कामना की भक्तों को ब्रह्मकमल प्रसाद के रूप में बांटा जाता है भर्की भूमियाल के सानिध्य में मा स्वनूल भी फ्यूलानारायण होते हुये भर्की से अपने मायके पहुंची मैनवाखाल भनाई की लोक जात में छतोलियों शामिल होती है। मैनवाखाल में उर्गम घाटी के सलना, ल्यारी,थैणा, बडगिण्डा, देवग्राम, गीरा व बांसा के अलावा पंचगै पल्ला जखोला किमाणा लांजी पोखनी द्वींग कलगोठ की जात होती है।
यहां उर्गमघाटी से 19 छतोलियां एवं पंचगै की 9 छतोली शामिल होती जहाँ पर नन्दा का आह्वान होता है।
आपको बता दें कि 9 सितंबर को 19 छतोलियां श्री घंटाकर्ण भूमिक्षेत्र पाल के सानिध्य में वंशी नारायण के समीप रिखडारा उडियार के लिए एवं भर्की भूमियाल के सानिध्य में उर्गम डुमक पल्ला की छतोली फ्यूनारायण के लिए प्रस्थान हुयी थी नन्दा के जात यात्री ने रिखडार उडियार में रात्रि विश्राम कर 10 सितंबर को मैनवाखाल में जागरों के द्वारा नन्दीकुड से नन्दा एवं सोना शिखर से स्वनूल को बुलाया गया जिसे स्थानीय भाषा में जात कहा जाता है मां नन्दा नन्दीकुड घिया विनायक केला विनायक सिला समुद्र होते हुये मैनवाखाल पहुंचती है
वहीं देवी स्वनूल सोना शिखर भनाई हिस्वाठेला बडवाठेला होकर मैनवाखाल पहुंचती है जहां पर दोनों बहिनों की भेंट होती है उर्गम घाटी एवं पंचगै की एकसाथ जात होती है। रात्रि विश्राम पुनः रिखडार उडियार में होकर अगले दिन 11 सितंबर को मायके पहुंच जाती है। दूसरी तरफ स्वनूल की जात यात्रा भर्की भूमियाल के सानिध्य में रात्रि विश्राम फ्यूलानारायण मंदिर में करती है जहां रातभर जागर गायन होता है अगले दिन सुबह भनाई बुग्याल में भगवती नन्दा स्वनूल का आवाह्न किया जाता है स्वनूल सोना शिखर से बुलाया जाता है
तो नन्दा नन्दीकुड मैनवाखाल रोखनी होकर फ्यूलानारायण मंदिर पहुंचती है रात्रि विश्राम पुनः फ्यूलानारायण मंदिर में होता है अगले दिन माता चोपता पंचनाम मंदिर भर्की पहुंचती हैं श्री फ्यूलानारायण के कपाट नवमी तिथि को बंद होने के बाद भरकी दशमी मेला आयोजित होता है जहां नन्दा स्वनूल देवी जागीरों के माध्यम से विदा लेती है। 12 सितम्बर की रात्रि एवं 13 सितंबर को भरकी दशमी मेला आयोजित होगा। नन्दा स्वनूल के मायके आने के साथ ही 12 सितम्बर को फ्यूलानारायण के कपाट बंद होगें 13 सितम्बर को भर्की दशमी मेला के बाद नन्दा स्वनूल की कैलाश विदाई होगी।
इस अवसर पर महावीर राणा पश्वा भूमि क्षेत्र पाल मां नन्दा के मैती प्रतिनिधि हर्षवर्धन रावत मां चंडिका पश्वा चन्द्र मोहन नन्दा स्वनूल देवी पुजारी प्रताप चौहान मेला कमेटी उर्गम घाटी अध्यक्ष राजेंद्र रावत वीरेंद्र रावत नरेन्द्र सिंह नेगी चंदन सिंह रावत बद्री कन्हैया अमन इन्द्र सजवाण केदार सिंह राकेश प्रदीप रघुबीर कुलदीप प्रदीप बादर गोपाल देवेन्द्र दुर्गावती राधा देवी गोदाम्बरी सज्वाण यशोदा समेत सैकड़ों लोग उपस्थित थे।