नई दिल्ली। युनो के मुख्यालय से प्रवाहित नव दिवसीय रामकथा के आठवें दिन आज साध्वी भगवती जी और परमार्थ निकेतन आश्रम हरिद्वार से स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की विशेष उपस्थिति रही। पहले साध्वी जी ने अपने भाव रखते हुए कहा:मोरारि बापू की इस रामकथा का संदेश पूरी दुनिया को कैसे जाता है वह बताया। उसने कहा कि हमारे मैसेज की जरूरत यह है। साध्वी जी ने कहा कि हनुमान जी से पूछा गया कि आपने सब कुछ कैसे किया?हनुमान कह सकते थे कि ऐसा किया, वैसा किया, यह भी कह सकते थे कि आप मुझे जानते नहीं है? लेकिन हनुमान जी ने ऐसा कुछ ना कर कर इतना ही कहा कि:भगवान राम का नाम लेता हूं और हो जाता है! स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने कहा कि एक छोटे से गांव में पैदा हुए और छोटी सी स्कूल में पढ़ते हुए आज पूरे दुनिया को दुनिया के मंच से संदेश देते है।
बापु को याद किया कहा किटी 2000 की साल में मिलेनियम गोल के लिए 108 संत युनोके हॉल में उपस्थित रहे थे और आज वह आउटकम आप देख रहे हैं। कथा शुरु करते हुए बापू ने कहा कि परमार्थ निकेतन गंगा तट पर रहे आश्रम में रहकर पूरी दुनिया में विचरण करते हुए यह साधु ने जो कहा वह शब्द नहीं भाव था। क्योंकि शब्द बहुत कम पडते हैं।। भाव ही महत्व का है। और बापु ने स्वामी जी के संन्यासीपन और सब सेवा को प्रणाम करते हुए आज की कथा का आरंभ किया। कथा के आरंभ में किसी ने पूछा था कि आशा और इच्छा करनी चाहिए कि नहीं? बापु ने कहा हम जीव है।इच्छा करते रहते हैं। इच्छा करने से आदमी विकसित होता है तो ठीक है! लाख उपदेश करें इच्छा कहां छुट्टी है। लेकिन मेरा इतना ही विनय है: इच्छा करो,खूब करो; इर्षा ना करो।। ऐसा करेंगे तो इच्छा अमृत वेल,कल्पतर हो जाएगी। परस्पर देवो भव-रंग अवधूत का यह सूत्र है।
रामचरितमानस का सूत्र है:सब नर करहि परस्पर प्रीति। विवेक से निर्णय करो इच्छा सम्यक है की हद से ज्यादा है। बापू ने कहा कि मद्य-शराब छूट जाए तो बहुत अच्छा है।मद्य छोड़ो ऐसा मैं नहीं कहूंगा। मैं इतना ही कहूंगा कि मद्य छूटे न छूटे मद छोड़ो।।अहंकार छोड़ो।मैं ईश्वर हूं, मैं इतना बड़ा हूं यह छोड़ो। साधु संत जागते हैं। एक बात है लेकिन निद्रा छोड़ो ऐसा नहीं कहूंगा। मैं कहूंगा निंदा छोड़ो। गांधीजी ने कहा था स्वाद छोड़ो। मैं नहीं कहूंगा स्वाद छोड़ो, लेकिन वाद विवाद छोड़ो।। मैं कभी नहीं कहूंगा कि देश छोड़ो, ना छोड़ो;मगर द्वैष छोड़ो।। श्री शंकराचार्य जी ने एक मंत्र विवेक चूड़ामणि में दिया है। बापू ने वह मंत्र समूह गान,समूह उच्चारण करके अपनी संवादी बातें बताई: जाति नीति कूल गोत्र दुरंग, नाम रूप गुण दोष वर्जितम्, देश काल विषयातिवर्ति, यद ब्रह्म तत तमसि भाव्यात्मानि यह मंत्र कहता है जो ब्रह्म है उसकी कोई जाति नहीं हमारे गुजरात में गंगा सती पानबाई को कहती है: जाति और पाति हरि के देश में नहीं है।
ब्रह्म की कोई नीति नहीं,कोई कुल गोत्र से भी पर है। ब्रह्म नाम,रूप,गुण,दोष से वर्जित है।। फिर भी ब्रह्म अवतार लेकर आते हैं तो हम राम और कृष्ण नाम देते हैं।। ब्रह्म को यह भाव से अनुभूत करो