देहरादून: फिक्की लेडीज ऑर्गनाइजेशन (फ्लो) उत्तराखंड चैप्टर ने आज राजपुर रोड स्थित हयात सेंट्रिक में ‘वॉयस ऑफ एम्पावरमेंट’ नामक एक टॉक सत्र की मेजबानी करी। कार्यक्रम में प्रसिद्ध ट्रांसजेंडर अधिकार कार्यकर्ता, बॉलीवुड अभिनेत्री, भरतनाट्यम नर्तक और 2008 में संयुक्त राष्ट्र में एशिया पसिफ़िक का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली ट्रांसजेंडर, आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की भागीदारी देखी गई। सत्र का संचालन प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अनुराग चौहान द्वारा किया गया, जो अपने देहरादून स्थित एनजीओ ह्यूमन्स फॉर ह्यूमैनिटी के माध्यम से सकारात्मक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं।
एक ट्रांसजेंडर के रूप में वह कैसे सामने आईं, इस बारे में बात करते हुए, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने कहा, “एक समय था जब मेरे माता-पिता मेरे लिए शादी के रिश्ते देख रहे थे, और उसी समय के दौरान मैं एक मीडिया प्रेस कॉन्फ्रेंस के चलते महिलाओं के कपड़ों और शृंगार में सजी हुई एक ट्रांसजेंडर के रूप में सामने आई। उस समय मेरे माता-पिता को मेरे यौन रुझान के बारे में पता चला।” उनके ट्रांसजेंडर होने पर उनके माता-पिता की प्रतिक्रिया के बारे में साझा करते हुए लक्ष्मी ने कहा, “मेरे माता-पिता ने मेरा बहुत समर्थन किया है और मुझे बेहतरीन शिक्षा प्रदान की है।
मैं एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार से आती हूं, और मेरे माता पिता की वजह से मैं कई मायनों में सुरक्षित महसूस करती आयी हूं।” दिन के विषय ‘वॉयसेस ऑफ़ इम्पोवरमेंट’ पर चर्चा करते हुए, लक्ष्मी ने अपने जीवन में सशक्तिकरण के बारे में बात करते हुए कहा, “मेरे लिए, सशक्तिकरण का सबसे बड़ा स्रोत मेरी मां रही हैं। उन्होंने मुझे हमेशा सिखाया कि मैं जीवन में जो भी करना चाहती हूं, मुझे हमेशा अपने चरित्र को कायम रखना चाहिए। मेरी माँ ने अतीत में मेरी बहुत रक्षा की है, जिसके बिना मैं आज जीवित नहीं होता। अंत मैं में यह कहना चाहूँगी कि चूँकि भगवान हर जगह नहीं हो सकते, इसलिए उन्होंने माँएँ बनाईं!”
बॉलीवुड के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं पहले भी बॉलीवुड इंडस्ट्री से जुड़ी रही हूं और मुझे कहना होगा कि बॉलीवुड में जिंदगी पूरी तरह से एक ड्रामा है। मेरी कई बॉलीवुड सुपरस्टार्स से दोस्ती रही है, लेकिन मैंने हमेशा इससे दूरी बनाए रखी है क्योंकि यह एक कृत्रिम उद्योग है।” सत्र के दौरान, लक्ष्मी ने भारत में पासपोर्ट रखने वाली पहली ट्रांसजेंडर व्यक्ति बनने के बारे में बात की। उन्होंने आगे बोलते हुए यह भी साझा किया, “जब मैं संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए न्यूयॉर्क की यात्रा कर रही थी, तो मुझे राजनयिक दर्जा आवंटित होने पर खुद पर बहुत गर्व था। उस पल मुझे मिली सारी प्रशंसा और मान्यता बहुत अच्छी लगी!”
यह पूछे जाने पर कि आचार्य महामंडलेश्वर के रूप में उनके अनुभव और क्या उन्हें इस भूमिका में कभी भेदभाव का सामना करना पड़ा है, लक्ष्मी ने कहा, “ऐसे कई लोग हैं जो हमें आज भी पसंद नहीं करते हैं। इस पहलू में हमें कई बाधाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन शुक्र है कि जूना अखाड़े के अवधेशानंद जी और हरिगिरि जी महाराज ने हमें स्वीकार किया। हमें जूना अखाड़े के साथ ‘शाही स्नान’ करने पर भी बहुत गर्व है।” मॉडरेटर अनुराग चौहान ने सत्र के दौरान अपने विचार साझा किए और कहा, “सशक्तीकरण की शुरुआत प्रत्येक व्यक्ति की अंतर्निहित गरिमा और अधिकारों को स्वीकार करने से होती है।
समावेशिता को बढ़ावा देने और गंभीर सामाजिक मुद्दों को संबोधित करके, हम अधिक न्यायसंगत और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्त करते हैं।” इस अवसर के दौरान, फ्लो उत्तराखंड चैप्टर की अध्यक्ष अनुराधा मल्ला ने वक्ताओं और उपस्थित लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा, “आज का यह सत्र महिलाओं के बीच सकारात्मक बदलाव लाने और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए फ्लो की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। हम ऐसी विशिष्ट हस्तियों की मेजबानी करके सम्मानित महसूस कर रहे हैं और समावेशी समाज की दिशा में अपनी यात्रा जारी रखने के लिए तत्पर हैं।”
कार्यक्रम में फिक्की फ्लो उत्तराखंड चैप्टर के सदस्यों की भागीदारी देखी गई, जिन्होंने सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन लाने पर गहन चर्चा की और विचारों का आदान-प्रदान किया।