चमोली (प्रदीप लखेड़ा): उत्तराखंड राज्य को बने हुए 23 साल हो चुके हैं, लेकिन स्थायी राजधानी का सवाल जस का तस है, सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों ने जन भावनाओं को हवा देकर इस मुद्दे पर राजनीति तो जमकर की, लेकिन समाधान करने के बजाय इसे हर बार आगामी वर्षों या चुनाव तक के लिए टाला जाता रहा है । राज्य आंदोलन से उपजी जन भावनाओं ने गैरसैंण को स्थायी राजधानी के रूप में देखा, लेकिन कभी भी अंतिम परिणाम तक नहीं पहुंचा।
उत्तराखंड राज्य गठन के दौरान दो नये राज्यों का भी गठन हुआ,जहाँ राजधानी को लेकर कोई बहस नहीं है लेकिन उत्तराखंड में स्थायी और अस्थायी राजधानी के मुद्दे हर हमेसा बहस होती हुई नजर आती है, 9 नवंबर सन 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग एक राज्य का गठन किया जाता है जिसे उत्तराखंड कहा जाता है और राज्य को बने हुए 23 वर्ष से अधिक हो गए है, गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग राज्य बनने से 40 साल पहले 1960 कि है, तब इसकी मांग पेशावर कांड के महानायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने की थी। गैरसैंण, गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित है। दोनों मंडल के लोगों को सहूलियत होगी,
इसी तर्क के आधार पर गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग की जाती रही है। हालांकि तत्कालीन भाजपा कि त्रिवेंद्र रावत सरकार ने 4 मार्च 2020 में गैरसैण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित तो कर दिया लेकिन स्थाई राजधानी कहां होगी इस सवाल का जवाब किसी के पास आज तक नहीं है, लेकिन राज्य के बजट सत्र 2024 के दौरान यह मुद्दा फिर गर्मा गया। पहले बजट सत्र गैरसैण में ना करने को लेकर पक्ष-विपक्ष के विधायकों की आपसी सहमति देखने को मिली। जो बजट सत्र के दौरान विधानसभा पटल पर भी गरमाया।
बजट सत्र के दौरान कर्णप्रयाग विधानसभा से भाजपा के विधायक अनिल नौटियाल ने बजट को लेकर अपनी बात रखते हुए मांग की कि 20 करोड़ के बजाय गैरसैण के लिए 100 करोड़ के बजट का प्रावधान किया जाए ताकि उसी हिसाब से गैरसैण में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जा सके, तो वहीं कांग्रेस से विधायक तिलक राज बेहड़ ने गैरसैण को लेकर अपना बयान देते हुए कहा कि सरकार ने गेरसैण के लिए बजट में 20 करोड़ का प्रावधान किया है तो वही स्थाई राजधानी देहरादून के लिए भी बजट में प्रावधान किया जाना चाहिए, उन्होंने कहा कि देहरादून को स्थाई राजधानी बना देना चाहिए, और देहरादून के अंदर सरकार को जमीन तलाशनी चाहिए
कांग्रेस विधायक के बयान के बाद से एक बार फिर गैरसैण को लेकर सियासत गरमा गई है, और सवाल भी इसलिए खड़ा होता है क्योंकि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणा पत्र में इसे राजधानी बनाने का संकल्प लिया था, वही राज्य आंदोलन के दौरान लोगो कि भावना राजधानी के रूप में गैरसैण के साथ थी लेकिन राज्य बनने के बाद से सरकारे इस मुद्दे को लटकाती रही है हालांकि भाजपा ने इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी जरूर घोषित किया है.। वही तिलक राज बेहड पर पलटवार करते हुए भाजपा से विधायक विनोद चमोली ने कहा कि कांग्रेस के मुद्दे स्पष्ट नहीं है, और कांग्रेस का अपने विधायकों पर नियंत्रण नहीं है,
कर्णप्रयाग विधानसभा स्थित उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण में सत्र ना कराए जाने को लेकर विपक्ष लगातार सवाल खड़े कर रहा था, और इसे राज्य आंदोलन के शहीदों का अपमान बता रहा था तो वही विपक्ष के विधायक कि मांग के बाद विपक्ष कि मंशा भी साफ होती दिख रही है वहीं वित्त मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने तिलक राज बेहड के बयान पर कहा कि कांग्रेस एक कन्फ्यूजन पार्टी है, जब देहरादून में बजट सत्र हो रहा था तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गैरसण में प्रतीकात्मक सत्र करते हैं और उन्हीं के विधायक यहां पर स्थाई राजधानी की मांग कर रहे हैं।
23 साल बाद भी उत्तराखंडवासी राजधानी कि बहस में लगे हैं तो यह राजनीतिज्ञों की गंभीरता को भी दर्शाता है। गैरसैण में विधानसभा सत्र की शुरुआत 2014 में हुई थी और तब से लेकर अब तक गैरसैण में सत्र कुल 30 दिन ही चला है हालांकि इस बार बजट सत्र गैरसैण में न कराए जाने को लेकर सत्ता पक्ष के विधायकों के साथ साथ विपक्षी विधायकों के सुर भी गैरसैण में सत्र न करवाने को लेकर दिखे, जब पहाड़ के चुने हुए प्रतिनिधि ही पहाड़ चढ़ने को तैयार नहीं तो वह पहाड़ के आम व्यक्ति की पीड़ा को कैसे समझेंगे? जब खुद विधायक पलायनवाद को बढ़ावा दे रहे हैं तो कैसे पहाड़ में शिक्षा,स्वास्थ्य, रोजगार, जैसे मुद्दों ओर चर्चा करेंगे और खंडहर होते हुए गांव को पलायन होने से कैसे बचा पाएंगे