देहरादून: सॉलिडैरीडैड क्षेत्रीय विशेषज्ञता केंद्र (एसआरईसी) और काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (सीएलई) ने घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारतीय चमड़ा उद्योग के प्रदर्शन को और मजबूत करने के लिए एक रणनीतिक साझेदारी गढ़ी है। आज दिल्ली में हस्ताक्षरित हुआ समझौता ज्ञापन (एमओयू), भारतीय चमड़ा उद्योग के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि वाला मील का पत्थर है। 1 जनवरी 2024 से 31 दिसंबर 2028 तक प्रभावी रहने वाला यह एमओयू, पांच साल की एक केंद्रीय व निर्णायक साझेदारी की शुरुआत करता है।
यह साझेदारी, वर्ष 2008 में स्थापित एक प्रमुख गैर-लाभकारी संगठन एसआरईसी और भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत काम करने वाली सीएलई के बीच हुई है। चमड़ा कारखानों के कार्यबल को सशक्त बनाने और इन कर्मचारियों का कौशल बढ़ाने के प्रति अटूट समर्पण इस साझेदारी के मूल में है। संयुक्त प्रयासों के माध्यम से व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना, स्वच्छ प्रौद्योगिकी को सुलभ कराने की सुविधा देना तथा ऐसे प्रमाणपत्रों को बढ़ावा देना सॉलिडैरीडैड और सीएलई का लक्ष्य है, जो चमड़ा उद्योग से जुड़े लोगों के अलग-अलग हुनर और ज्ञान की बुनियाद मजबूत करते हैं।
यह एमओयू आगामी पांच वर्षों में 150,000 श्रमिकों को प्रशिक्षित करने, क्षमता-निर्माण कार्यक्रम संचालित करने तथा देश के प्रमुख चमड़ा संस्थानों व चमड़ा कारोबारों के साथ साझेदारी का निर्माण करने के लिए सहभागिता की प्रतिबद्धता का खाका खींचता है। सीएलई प्रशिक्षणों, कार्यशालाओं, हितधारकों के साथ काम करने में सहयोग करेगी, तथा हरित व चमड़े की वृत्तीय पद्धतियों वाले एक लेदर पोर्टल का विकास और प्रचार करने की दिशा में अपना योगदान देगी।
एसआरईसी भारतीय चमड़ा उद्योग में प्रचुर अनुभव और मजबूत उपस्थिति प्रदान करती है। यह कानपुर, कोलकाता और तमिलनाडु जैसे चमड़े के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में टिकाऊ पद्धतियों के माध्यम से आपूर्ति श्रृंखला का रूपांतरण करने में सबसे आगे रही है। सीएलई भारतीय चमड़ा सेक्टर का सर्वांगीण विकास करने तथा वैश्विक चमड़ा व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए निर्यात में ऊंची वृद्धि हासिल करने को लेकर प्रतिबद्ध है।
इस अवसर पर, सीएलई के चेयरमैन श्री संजय लीखा ने कहा: “काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स (चमड़ा निर्यात परिषद) ने भारतीय चमड़ा उद्योग के लिए 2030 तक 47 बिलियन अमेरिकी डॉलर के कारोबार का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इसने चमड़ा पेशेवरों के लिए नवाचार करने के रास्ते खोल दिए हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि सॉलिडैरीडैड के साथ आज हुई सहभागिता और रणनीतिक साझेदारी, कार्यबल का सशक्तीकरण करके टिकाऊ विकास और नवाचार को बढ़ावा देने वाले नए मानक स्थापित करेगी। ऐसी पहल भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ नारे के साथ भी बहुत अच्छी तरह से मेल खाती है।”
एसआरईसी की कंट्री मैनेजर सुश्री मोनिका खन्ना ने इस साझेदारी को विशेषज्ञता और प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली मिलन बताते हुए कहा कि यहां टिकाऊ पद्धतियों में एसआरईसी का जमीनी अनुभव, सेक्टर का विकास करने और वैश्विक हदें पार करने के प्रति सीएलई की प्रतिबद्धता के साथ जुड़ गया है।
“साथ मिलकर, हम केवल कार्यदक्षता और विकास का ही लक्ष्य हासिल नहीं करना चाहते, बल्कि कायापलट कर देना चाहते हैं – एक ऐसा रूपांतरण, जो उत्तरदायित्व से भरे उत्पादन को प्राथमिकता देता है, हमारे कार्यबल को सशक्त बनाता है, और भारत के चमड़ा सेक्टर को वैश्विक बाजारों की अगुवाई करने की स्थिति में पहुंचा देता है। अगले पांच वर्षों में, हम 150,000 कर्मचारियों को प्रशिक्षित करेंगे, क्षमता-निर्माण करेंगे तथा नवाचार व टिकाऊपन को बढ़ावा देने वाली साझेदारियों को मजबूती प्रदान करेंगे। यह महज एक सहभागिता से कहीं ज्यादा बड़ी चीज है; यह भारतीय चमड़े के लिए ज्यादा हरित, ज्यादा न्यायसंगत और फूलते-फलते भविष्य की उत्प्रेरक है।”
सीएलई के कार्यकारी निदेशक, श्री आर. सेल्वम (आईएएस) ने इस सहभागिता की अहमियत पर रोशनी डालते हुए कहा, “यह सहभागिता 7एस वाली रणनीति – सस्टेनेबिलिटी, स्केल, स्किल, स्पीड, सप्लाई चेन, सेल्स और स्टायल के माध्यम से चमड़ा सेक्टर में समृद्धि के रास्ते खोलने की हमारी संयुक्त परिकल्पना को प्रेरित व प्रोत्साहित करेगी।”
सॉलिडैरीडैड के एशिया प्रमुख (एमएसएमई का प्रदूषण प्रबंधन) श्री ताथीर जैदी ने इस परिवर्तनकारी सहभागिता को लेकर उत्साह व्यक्त करते हुए बताया, “एमओयू पर हस्ताक्षर करना, चमड़ा सेक्टर के सर्वांगीण विकास और उन्नति के प्रति समर्पित प्रतिबद्धता का प्रतीक है, जिसके तहत प्रशिक्षण और क्षमता-निर्माण की पहलों के माध्यम से चमड़ा कारखानों के कार्यबल को सशक्त बनाने पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा।”
यह रणनीतिक साझेदारी, भारतीय चमड़ा सेक्टर में टिकाऊ पद्धतियों को बढ़ावा देने की दिशा में एसआरईसी द्वारा किए गए काम की बदौलत संपन्न हुई है। संगठन ने नीदरलैंड सरकार द्वारा वित्त पोषित ‘कानपुर-उन्नाव लेदर क्लस्टर में प्रदूषण की रोकथाम और जल के किफायती उपयोग’ परियोजना के एक कार्यान्वयन भागीदार की शक्ल में वर्ष 2017 के दौरान इस सफर का आगाज किया था।
एसआरईसी के अभूतपूर्व प्रयासों से जल प्रवाह मीटर, सोलनॉइड वाल्व और स्मार्ट वॉटर सेविंग सिस्टम जैसी अत्याधुनिक तकनीकों की शुरुआत हुई, जिससे चमड़ा कारखानों में पानी के उपयोग को प्रभावी ढंग से कम किया गया। अभिनव वेस्ट-टू-वैल्यू की पद्धतियां अपनाने, चूने के गाढ़े कीचड़ से पेवर टाइल्स बनाने, चरबी से टैलो ऑइल निकालने, और बफिंग डस्ट से बॉन्डेड चमड़ा तैयार करने की बदौलत सॉलिडैरीडैड ने इस उद्योग की तरफ से बड़ी तारीफ हासिल की है।
एमओयू सॉलिडैरीडैड और सीएलई के बीच हुई सहभागिता पर आधारित है, जिसने पहले ही टिकाऊ पद्धतियों, खासकर जल अनुकूलन, अपशिष्ट कटौती, वृत्तीयता, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन में कमी और डिजिटल उपकरणों के एकीकरण जैसे क्षेत्रों में असाधारण प्रगति हासिल कर ली है। उल्लेखनीय उपलब्धियों के अंतर्गत, कोलकाता में लेदर ट्रेड इंटेलीजेंस पोर्टल का उद्घाटन होना तथा हाल ही में एलएएफसीएएन के दिल्ली में आयोजित समारोह के दौरान काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट्स के चेयरमैन द्वारा एलटीआईपी क्यूआर कोड का लॉन्च किया जाना शामिल है। ये कदम भारतीय चमड़ा उद्योग में टिकाऊ बदलाव लाने के प्रति दोनों संगठनों की अटूट प्रतिबद्धता दर्शाते हैं।