चमोली (प्रदीप लखेड़ा): उत्तराखंड में हालांकि कई धार्मिक, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक मेलों की परम्परा रही है लेकिन कई मेले यहां ऐसे भी लगते आ रहे हैं जिनमें संस्कृति, बाजार और उद्योग प्रर्दशनी सभी का समागम होता है।ऐसा ही गौचर का सुप्रसिद्ध औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेला भी है जो वर्ष 1942 से गौचर के सुरम्य मैदान में आयोजित होता आ रहा है।
भोटिया मेले के रूप में प्रारंभ हुआ यह मेला बीच के कालखंड में यद्यपि कभी लोकसभा एवं विधानसभा के चुनावों की तिथि, भूकंप की त्रासदी एवं सूखा पड़ने जैसी वजह से सात बार आयोजित नहीं हो पाया किन्तु बहुउद्देश्यीय आयामों के लिए लगने वाले इस मेले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि मेले में जहाँ जिंदगी की आवश्यकताओं की पूर्ति की वस्तुएं पहाड़वासियों को सस्ती मिलती है वहीं जनपद में शासन की नीतियों के अनुसार प्राप्त उपलब्धियों के स्टाल भी लगाये जाते हैं। सभी सरकारी एवं गैर सरकारी विभागों द्वारा लगने वाले स्टाल यहाँ आकर्षण के केंद्र होते हैं।
मेले में स्वस्थ मनोरंजन, गढ़वाल-कुमाऊं मंडल की संस्कृति के आधार पर शिक्षण संस्थाओं एवं सांस्कृतिक क्लबों के कार्यक्रम, खेलकूद, विकास गोष्ठियां, सम्मेलन भी मेले के स्तम्भ होते हैं एवं मेले में आने वाले हजारों लोगों का भरपूर मनोरंजन होता है।
यहाँ मेले में दूर दराज से आये लोग सर्कस, चर्खी, मौत का कुंआ एवं खेल तमाशों से आश्चर्यचकित होते हैं।
जिलाधिकारी चमोली पूरे प्रशासन के साथ मेले को सम्पन्न कराने में जुटे हुए हैं।